साइकोलॉजी में एक नियम है, यदि आपने अपने दिमाग में कोई पिक्चर बनाई जो आप बनना चाहते हैं, ( Change Your Thoughts Change Your Life ) और आपने उस पिक्चर को अपने दिमाग में लंबे समय तक रखते हैं, तो आप वह बन जाते हैं जो आपने सोचा था।
विलियम जेम्स
एक शादीशुदा महिला थी। उसकी उम्र लगभग 30 साल के थे। और उनके दो बच्चे भी थे। बहुत से लोगों की तरह वह एक ऐसे घर में पली-बढ़ी थी जहां उसकी लगातार आलोचना की जाती थी। और अक्सर उसके माता-पिता उसके साथ गलत व्यवहार करते थे। नतीजा यह हुआ, उसके अंदर हिन्नताबोध और कम आत्म सम्मान की गहरी भावनाओं को विकसित हुआ। वह हर समय नकारात्मक और भयभीत रहती थी और उसे बिल्कुल भी भरोसा नहीं रहता था। वह शर्मीली और खुदगर्जी थी और खुद को किसी भी काम के लिए योग्य नहीं मानती थी। उसने यह महसूस किया कि वास्तव में उसके अंदर कुछ भी प्रतिभा नहीं है।
एक दिन, जब वह अपने परिवार के लिए खाने पीने का सामान लेने के लिए एक स्टोर पर जा रही थी, जैसे ही उसने रोड पार कर ही रही थी, तभी अचानक से एक तेज गति कार उसे जोरदार टक्कर मार दी। जब उसकी आंख खुली, तो उसने खुद को हॉस्पिटल के एक बेड में पाई। वह बहुत मुश्किल से बोल पा रही थी और उसकी याददाश्त भी चली गई थी। यहां तक कि वह कौन है उसका नाम क्या है, उसे कुछ मालूम नहीं रहा। उसको अपना जीवन का भूतकाल का कोई भी घटना या बात बिल्कुल मालूम नहीं रहा यानि उनकी यादास्त चली गई।
पहले तो डॉक्टरों ने सोचा कि शायद यह अस्थाई होगा। लेकिन एक हफ्ते बीत गए, दो हफ्ते बीत गए, महीनों बीत गए उसका यादाश्त का कोई निशाना नहीं लौटा। उनके पति और दो बच्चे रोज उनको मिलने के लिए आते थे, लेकिन वह अपने पति और बच्चे को नहीं पहचान पाती थी। यह एक ऐसा असामान्य मामला था कि, दूसरे हॉस्पिटल के बड़े-बड़े डॉक्टर और विशेषज्ञ उसे देखने उसका परिक्षण करने के लिए, उसकी स्थिति के बारे में सवाल पूछने के लिए आते थे।
आखिरकार वह, अपने घर चली गई, लेकिन उसकी याददाश्त पूरी तरह से खाली थी। उसके पिछले जीवन में क्या-क्या हुआ था, अभी तक उसको कुछ मालूम नहीं हुआ था। हालांकि अभी वह बिल्कुल ठीक थी और तंदुरुस्त थी। मेरे साथ ऐसा क्या हो रहा हैं और क्यों हो रहा हैं यह समझने के लिए उन्होंने चिकित्सा शास्त्र पाठ्यपुस्तक अध्ययन करना शुरू किया। उसने इस अध्ययन से Amnesia और Memory Loss में विशेषज्ञता हासिल की। और उसने अपने हालात पर एक लेख लिखि।
कुछ समय बाद अपनी लेख सार्वजनिक करने के लिए, और अपनी भूलने की बीमारी की बारे में सवालों को जवाब देने के लिए उसने एक प्रेस सम्मेलन बुलाई, जिसमें बड़े-बड़े डॉक्टर, चिकित्सा विभाग के बड़े-बड़े विशेषज्ञ, भी उपस्थित थे।
इस अवधि के दौरान कुछ आश्चर्यजनक हुआ। वह बिल्कुल पूरी तरह से एक नया व्यक्ति बन गई थी। अस्पताल से लेकर उसकी परिवार सभी ने उसको बहुत प्यार और सम्मान दिया। इससे उस महिला का आत्म सम्मान और आत्मविश्वास अधिक बढ़ गया। अब वह एक विद्वान महिला बन गई थी। वह एक पढ़ी-लिखी, सकारात्मक विचारधारा, आत्म विश्वासी, एक चिकित्सा विशेषज्ञ और प्रखर वक्ता बन गई थी। हर जगह उनकी की मांग बढ़ने लगी।
उसके बचपन के सारे नकारात्मक भावनाओं, हिन्नताबोध और नकारात्मक विचार मिट चुका था। और वह एक महान विचारधारा की महिला बन गई थी। लेकिन जो सब हो पाया था उसकी सोच बदलने से मुमकिन हो पाया था, जिससे उसका जीवन बदल गया।
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खाली सलेट
स्कॉटिश दार्शनिक डेविड ह्यूम ” तबुला रासा या Blank Slate ” के विचार का प्रस्ताव करने वाले पहले व्यक्ति थे। यह सिद्धांत कहता है कि जो भी व्यक्ति इस दुनिया में पहले आता है वह बिना किसी सोच और विचार के आते हैं। और वह व्यक्ति जो सोचता है और महसूस करता है, सब कुछ बचपन से ही सीख जाते हैं। जैसे कि एक बच्चे का दिमाग खाली Slate की तरह होता है, जो भी व्यक्ति या इंसान उस बच्चे की आस पास से गुजरता है, वह बच्चे उस इंसान का हाव भाव ग्रहण करने लगता है। और बड़े होते होते वह सब कुछ सीख जाता है और अनुभव करने लगता है। एक व्यस्क जो बनता है और करता है प्रारंभिक चरण का परिणाम है। जैसा की अरस्तु ने लिखा है, ” whatever is impressed is expressed.”
शायद 20 वी शताब्दी में मानव क्षमताओं के क्षेत्र में सबसे बड़ी सफलता आत्म – अवधराणा की खोज थी। यह एक विचार है कि हर व्यक्ति बचपन से हीं खुद के बारे में विचारों का बंडल विकसित करता हैं। तब आपकी आत्म अवधारणा आपके अवचेतन कंप्यूटर का मास्टर प्रोग्राम बन जाती हैं जैसे सोचना,बोलना, महसूस करना और कार्य करना। इसके कारण आपके बाहरी जीवन में परिवर्तन आता हैं, आपके आत्म अवधारणा में बदलाव शुरू होते हैं,जिस तरह से आप अपने और अपनी दुनियां के बारे में सोंचते हैं और महसूस करते हैं।
ज़ब कोई बच्चा जन्म लेता हैं, उसके साथ कोई आत्म अवधारना नहीं होता हैं। हर एक विचार,दृष्टिकोण,राय भावना और मूल्य जो कुछ भी हैं वह बचपन से हीं सीखता हैं। आज आप जो कुछ भी हैं,वह एक विचार या इप्रेशन का परिणाम हैं जिसे अपने अपना लिया और इसे सत्य के रूप में स्वीकार किया। ज़ब आप किसी चीज को सच मानते हैं, तो यह आपके लिए सच हो जाता हैं। यह कोई भी तथ्य हो सकता हैं।
पहली छाप हमेशा स्थाई होता हैं
जब आपके माता पिता आप के पालन पोषण करते हैं। आपको हर समय वह बताते हैं कि आप बहुत अच्छे हैं। आपको ढेर सारे प्यार करते हैं आप को प्रोत्साहित करते हैं आप को समर्थन देते हैं और आप में विश्वास भर देते हैं। इससे फर्क नहीं पड़ता है कि आपने क्या किया और क्या नहीं। आप इस विश्वास के साथ बड़े होते हैं कि आप एक बहुत मूल्यवान व्यक्ति है। 3 साल के उम्र से ही आपके अंदर विश्वास Lock हो जाता है, आप धीरे-धीरे समझने लगते हैं और अपने रिलेटिव को भी जानने लगते हैं। इससे फर्क नहीं पड़ता कि आपके साथ क्या होता है,आप जो विश्वास करते हैं वास्तविक होने लगता है।
जब आपके माता पिता आप के पालन पोषण करते हैं, जो नहीं जानते हैं कि आपका व्यक्तित्व विकास करने में उनका शब्द और व्यवहार कितना शक्तिशाली हो सकता है। आपको अनुशासन या नियंत्रण में रखने के लिए कटु वचन कहते हैं। आपको कहीं भी जाने के लिए या कुछ भी करने के लिए आपको मना करते हैं। आप को कंट्रोल करने के लिए शारीरिक या मानसिक सजाया देते हैं।
जब एक बच्चे के शुरुआती उम्र से ही लगातार आलोचना की जाती हैं, तो वह जल्द ही समझ जाता है कि उसके साथ कुछ गड़बड़ हो रहा हैं। वह यह नहीं समझ पाते हैं कि क्यों उनका आलोचना किया जाता है? क्यों उसे दंडित किया जाता है? उसको ऐसा महसूस होने लगता है कि उसके माता-पिता उसके बारे में जानता है। और वह महसूस करने लगता है कि वह मूल्यवान या प्यारा नहीं है। वह बहुत नालायक हैं। वह बेकार हैं।
किशोरावस्था और व्यस्तता में लगभग सभी व्यक्ति में समस्याएं होती है, जो मनोवैज्ञानिक तरीका से प्रेम को रोक देता है। जैसे गुलाब को वर्षा की जरूरत होती है, वैसे ही एक बच्चे को प्यार की जरूरत होती है। जब किसी बच्चे को प्यार से वंचित किया जाता है, तो खुद को असुरक्षित मानने लगता है। वह सोचने लगता है कि मैं अच्छा नहीं हूं। उसको अंदर ही अंदर घुटन होने लगता है, और अलग व्यवहार करने लगता है। प्रेम की अभाव के कारण उसके अंदर दुर्भावना, व्यक्तित्व विकास की कमी, क्रोध, निराशा, महत्वाकांक्षा की कमी और लोगों के साथ अच्छे रिश्ते ना रख पाना जैसा बड़ा समस्या खड़ा होने लगता हैं।
आप बेखौफ़ पैदा हुए हैं
जब एक बच्चे जन्म लेता है, तब उसको गिरने और शोर के अलावा कोई डर नहीं होता है। अन्य सभी डर को बच्चे की बढ़ती उम्र के साथ साथ ही सिखाना चाहिए।
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अंतमे :
मैंने इस पोस्ट के माध्यम से आपके साथ ये साझा किया हैं, कि कैसे हमारे सोच बदलने से हमारी जीवन बदल जाती हैं। हमारे जीवन में खुशियां भर जाती हैं। इसलिए कभी भी अपने मनमें सदैव सकारात्मक विचार रखें, किसी के प्रति नाकारात्मक भावना ना रखें।
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Yah post ne mere man ke sare negative soch ko khatam kar diya …….aapne lajawab likha hai ….post karne ke liye aapko bahut bahut dhanywad…