7 Tips to Make Your Child Discipline: Discipline नाम का कोई चीज होता है? अक्सर यह बात पेरेंट्स को कहते मिल जाते हैं अपने बच्चों को। बहुत से पेरेंट्स परेशान रह जाते हैं, कि बच्चों को बिल्कुल discipline ही नहीं है। कितना समझा लो बात नहीं सुनते बात नहीं मानते बस अपनी-अपनी चलाती है। बिल्कुल discipline ही नहीं है।
पेरेंट्स अब यह बच्चों में Discipline कैसे लाए? इस बात के लिए मै यहाँ पर पैरेंट्स के लिए कुछ टिप्स साझा करने जा रहा हु ।अगर पेरेंट्स थोड़ा ध्यान से सोचेंगे तो बच्चों में Discipline आ जाएगा। वैसे तो टिप्स बहुत सारे हैं। लेकिन आज हम सिर्फ कुछ टिप्स के बारे में बात करेंगे जो कि बहुत हि कारगर हैं। जो हम दैनिक जीवन में इस्तेमाल करते हैं, और हम सोचते नहीं है। और कई बार तो हमारा ध्यान भी नहीं जाता, अच्छा ऐसा भी हो सकता है, इससे भी बच्चा Discipline हो सकता है।
तो चलिए जानते है :
Contents
7 Tips to Make Your Child Discipline
1. अपने बच्चों के लिए समय निकालें

हमें पता है आप अपने बच्चो के लिए समय निकालते हैं। आप ऑफिस से आते हैं, घर में बच्चों के साथ बैठते हैं, बच्चों के साथ टीवी देखते हैं। पर साथ ही साथ मोबाइल भी चल रहा होते है, लैपटॉप भी चल रहा होते है। वह काम भी जरूरी होता है।
अगर उस टाइम में आपके बच्चे आप से कुछ पूछते है तो, आप बोलते हो देखते नहीं मैं क्या काम कर रहा हूं। मेरे लिए यह ज्यादा इंपोर्टेंट है। होता है ना इस तरह से। वही मैं कहना चाहता हूं।
कई बार हमारा इंटेंट्स नहीं होता है पर बोला जाता है। ऑफिस के कई सारे काम कई झमेले। काम का कोई लिमिट नहीं होता है। कभी-कभी हमको वह सारे काम घर में भी लेकर आना पड़ता है।
पर वही बात है कि अगर आप अपने बच्चों को समय नहीं देंगे, अगर आपसे आपके बच्चे कुछ पूछने आएंगे और आप उसको भगा देंगे, उसको कहेंगे कि देखता नहीं है मै क्या काम कर रहा हूं? तो बच्चों में क्या असर पड़ेगा?
वह जिद्दी नहीं होगा। बिल्कुल होगा। इसलिए अपने बच्चों के लिए भी थोड़ा समय निकालें। बात बात में अपने बच्चों को धमकी ना दें। देखिए घर में एक मां की बहुत सारे काम होते हैं। और सबसे ज्यादा टाइम घर में एक मा ही रहती है। ऐसे में जाहिर है कि बच्चों के साथ वही ज्यादा टाइम भी बिताति है।
2. अपने बच्चों धमकी नदे

कभी-कभी क्या हो जाता है कि बच्चों से कुछ गलत हो जाता है। और मां कहती है कि आने दो पापा को मैं क्या हाल कराती हु तुम्हारा। तो यह बात बात में तो धमकी होता है ना तेरे पापा आएंगे तुझे सीधा कर देंगे तुझे देख लेंगे। यह तो बात होता है ना पेरेंट्स, यह बात बच्चों के बाल मन में बैठ जाते हैं। इसलिए बच्चों के साथ इस तरह की बातें ना ही बोले तो अच्छा है।आप खुद ही फैसला कर लीजिए क्या रिजल्ट होना है।
3. अपने बच्चों के सामने झूठ ना बोले
और दूसरा बात यह भी होता है कि आप बच्चों के सामने कभी भी झूठ ना बोले। हम पेरेंट्स क्या करते हैं कि बहुत बार झूठ बोलते हैं। जैसे कि मान लीजिए, हम घर पर हैं, अपने काम पर बिजी है या आराम कर रहे हैं, अगर उसी टाइम किसी का फोन आ गया, या आपकी ऑफिस से फोन आ गया, तो आप कहते हैं कि सर आज मेरा तबीयत ठीक नहीं है।
या कोई दूसरा आदमी आपको मिलने आ गया, तो आप मिलना नहीं चाहते हैं। मतलब आप झूठ बोलते हैं। एसि बातें जो है ना बाल मन में बहुत असर डालते हैं। इससे क्या होता है कि बच्चों को भी लगता है कि अगर ऐसे प्रॉब्लम है तो यही सॉल्यूशन होता होगा। इसलिए अगर आपका कोई प्रॉब्लम है जेनुन प्रॉब्लम है या कोई बात है तो आप बच्चों से थोड़ा दूर जाकर बात कर सकते हैं।
लेकिन बच्चों के सामने जो आप अगर ऐसे बात करेंगे ना, तो बच्चों को तो फर्क पड़ेगा ही, बच्चे डिसिप्लिन कैसे रहेगा. यह सुनके तो आपके बच्चे भी बोलने शुरू कर देंगे। उसका भी कोई दोस्त आएगा वह भी इसी तरह से बोलना शुरू कर देगा। इसलिए यह बेहद जरूरी है कि बच्चों के सामने झूठ ना बोला जाए।
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4. अपने बच्चों के सामने पेरेंट्स की आपस में लड़ाई

यह तो बच्चों की बाला मन में बहुत ही बुरा असर डालता है। कई बार ऐसा होता है कि पति पत्नी के बीच में झगड़ा होता है। झगड़े के बाद में पत्नी अपनी दुखड़ा रोती है। पति अपने दुखड़ा रोता है। बच्चों के सामने ऐसा करने से क्या होता है ना बच्चे बीच में पिस के रेह जाता है।
बच्चे दोनों से प्यार करते हैं। ऐसे हालत में क्या हो जाता है ना बच्चों को कुछ समझ में नहीं आता है। मम्मी को प्यार करें या पापा को प्यार करें। इसलिए पेरेंट्स बच्चों को बाला मन को समझ के, उसको फिलिंग्स को समझ के, बच्चों को सामने पति पत्नी बीच के झगड़ा तो बिल्कुल ही नहीं करना चाहिए।
इससे क्या हो जाएगा आपके बच्चे बहुत उदंड हो जाएगा, जब मां-बाप के बीच का यह सब व्यवहार जो वह देखेगा तो उसका मन और खराब हो जाएगा, उसका बालमन और बिगड़ जाएगा और वह उदंड होता ही जाएगा। जिद्दी हो जाएगा।
5. अपने बच्चों को डिमोटिवेट मत कीजिए

कभी-कभी क्या होता है ना बच्चे कुछ नया चीज करने की कोशिश करते हैं। और जाहिर है कोई नया चीज करेगा, तू गलत तो करेगा ही। और अगर इसमें उसको आप यह बात कहेंगे। कि मैं तुमको तो पहले ही बोला था ऐसा नहीं होगा, तुम ऐसा नहीं कर सकते।
मान लो आपके बच्चे कुछ नया कर रहे हैं, उदाहरण के लिए वह साइकिल चलाना सीख रहा है। और वह साइकिल चलाना सीखते टाइम गिर गया। तो पेरेंट्स कहेंगे कि तुमको तो पहले ही मना कर रहा था। तुमको मैं बोला था ना गिर जाएगा। मैंने पहले ही कहा था ना कोई फायदा नहीं है।
पेरेंट्स, अगर आपके बच्चे कुछ नयाँ करने की कोशिश कर रहे हैं। तो उसे करने दीजिए। अगर गलत भी हो जाए तो फिर भी उसे कोशिश करने दीजिए। अगर वह कोई नई चीज कोशिश करना चाहता है तो उसे करनी दीजिए, रोकीए मत।
अगर इसमें आप अपने बच्चों को बोलेंगे देखा मैंने तो तुमको पहले ही बोला था तुमसे नहीं होगा। ऐसा करने से बच्चों का उत्साह ही खत्म हो जाएगा। आगे जाकर वह अपने जीवन में कुछ कर हि नहीं पाएगा। उसमें हिम्मत ही पैदा नहीं होगा। अपने जीवन में एडवेंचर कर ही नहीं पाएगा। उसको हर बात में डर लगने लगेगा। कदम कदम पर डर लगेगा।
ऐसा बात जो है ना हर घर में होता रहता है, लेकिन हम महसूस नहीं करते हैं। क्योंकि जो पेरेंट्स होता है ना वह सोचता है कि हम बड़े हैं, यह फीलिंग हमारे मन में गढ़ जाता है। हमें कोई कुछ नहीं कह सकता है। और हम बच्चों को कुछ भी कह सकते हैं।
पर कुछ बात मे बहुत ध्यान रखना पड़ता है अपने बच्चों के भविष्य के लिए।
6. अपने बच्चों को दूसरे के साथ तुलना मत करें

हम अपने बच्चे को दोस्तों के साथ तो तुलना करते ही है, पर हम अपने बच्चों के घर के साथ भी तुलना करने लगते हैं। तेरा छोटा भाई ऐसा, तेरी छोटी बहन ऐसी, वह कितना अच्छा। तू बिल्कुल नालायक है। तू कहां से आ गया। हे भगवान! इस तरह की बातें।
पेरेंट्स क्या हो जाता है ना इस तरह की बातें बच्चों को नकारात्मकता के तरफ लेकर जाता है। बच्चों को नेगेटिविटी के तरफ लेकर जाता है। इस तरह की बातें सुन सुन के बच्चों की कान पक जाते हैं। बच्चों को लगने लगता है मैं तो कुछ भी नहीं हूं, मैं तो बिल्कुल बेकार हूं।
ऐसा फीलिंग तो बिल्कुल बच्चों के मन में आने ही नहीं देना चाहिए। हर बच्चों के अंदर एक अलग खासियत होती है। इसलिए बजाय कोई तुलना करें उसकी खासियत निकालने की कोशिश करें। उसकी छोटी छोटी सफलताओं में भी उसे उत्प्रेरित करना चाहिए,. कि श्यावास तुमने बहुत अच्छा काम किया है। उसकी पीठ थपथपाना चाहिए, यह नहीं कि उससे कोई दूसरे बच्चों के साथ तुलना करें।
7. अपने बच्चों की पसंद नापसंद समझे

कई बार क्या होता है ना, हम बच्चे को बिल्कुल बच्चे ही समझते हैं। कि चल तू तो बच्चा ही है। कई बार क्या होता है जैसे कि आपको बच्चे को रूम को सजावट करनी है, क्या चीज कहां पर रखनी है। जैसे कि बच्चों को दीवारों मे जो कलर पसंद नहीं है हम वही कलर करवाएंगे। उसको जो टेबल नहीं पसंद हम वहि टेबल रखबाएंगे। इस रूम में यही रखा जाएगा।
अगर आप बच्चों के रूम को सजावट कर रहे हैं, तो आप को बच्चों को राय लेना भी जरूरी होता है। बच्चों को भि अहमियत देना होता है, उसको लगना चाहिए कि मेरा भी कोई सुनता है।
जैसे कि आप कभी-कभी अपने पुरे फैमिली को लेकर होटल में जाते हैं खाना खाने के लिए। इसमें क्या करें कि मेनू कार्ड अपने बच्चों को पकड़ा दीजिए. और बोलिए कि चलो आज आप ऑर्डर करो। इसमें क्या होता है ना बच्चों को एक कॉन्फिडेंस आता है। उसके अंदर आप में विश्वास बढ़ जाता है। उसको लगता है कि मैं भी कुछ हूं।
कई बार क्या होता है ना, अगर बच्चे ने मेनू कार्ड पकड़ लिया तो, बड़े आदमी बोलते है कि देखो बच्चे ने मेनू कार्ड पकड़ लिया चल रख तुमको क्या पता तुम क्या आर्डर करोगे। तो बच्चा बेचारा क्या करेगा। फट से रख देगा। बच्चे को भी मन में होता है, नई जगह आए हैं, होटल में आए है, कुछ नया चीज कोशिश करू।
जाने अनजाने में बच्चों के साथ इस तरह के बहुत से बातें हो जाते हैं। इन सब बातों का बच्चों पर बहुत नकारात्मक असर पड़ता है। वह जिद्दी होता जाता है। वह आपके कुछ कहे ही नहीं मानता है।
आपको लड़ते हुए झगड़ते हुए देखेगा, आपको झूठ बोलते हुए देखेगा, आप उसको रिस्पेक्ट नहीं करोगे।
देखिए पेरेंट्स हमेशा बोलते हैं ना हम जैसा देंगे हमको वैसा ही मिलेगा। यही बात होता है हमारे बच्चों के ऊपर भी। अगर हम अपने बच्चों को अच्छा बात सिखाएंगे, तो वह अच्छा बात सीखेगा । हम उसको रेस्पेक्ट देंगे तो वह रेस्पेक्ट करेगा। उसको गुस्सा देंगे तो वह भी गुस्सा देगा।
मैंने एक सर्वे में पढ़ा था कि 95% बच्चे जो है ना अपने घर की माहौल से सब कुछ सीखता है। जो देख रहे हैं, जो सुन रहे हैं, जो अपने पेरेंट्स को बातें करते देखते हैं। इससे बच्चे प्रेरित हो जाते हैं। बच्चे अपने पेरेंट्स को रोल मॉडल मानते हैं।
तो सोचिए जब बच्चों पेरेंट्स को रोल मॉडल मानते हैं. तो क्या करना चाहिए। हम अपने बच्चों को जितना डिसिप्लिन देंगे, हमको उतना मिलेगा।
अंतमे:
पैरेंट्स, आपतो जानते हि है, हम जैसे बिज बोते है, पौधे भि वैसे हि उगते है । बिल्कुल यहि बात हमारे बच्चों मे भि लागु होता है। जैसे एक कुम्हार कच्चे मिट्टिको मन चाहे आकार मे ढाल सकते है, वैसे हि एक बच्चे कच्चे मिटि कि तरह होते है, आप अपने बच्चे को क्या बनाना चाहेंगे वो आप पर निर्भर करता है।
मुझे, उम्मिद है कि यह पोस्ट आपको अच्छा लग होगा । यदि आपको लगता है कि यह ज्ञानआपके दोस्तो को भि जाननी चाहिए तो सोशल मेडिया मे जरुर शेयर करे : यदि आपके मनमे इस पोस्ट को लेकर कोइ सुझाव हो तो बेझिझक कमेंट बक्स मे लिखे। पोस्ट पढने के लिए आपको बहुत बहुत धंयवाद ।
FAQ:
अपने बच्चो को कैसे सम्झाए ?
आप अपने बच्चो के साथ शांत बैठकर बात करे । एसा नहि है कि बच्चो का जिद्दी होना गलत बात है , लेकिन यदि आपके बच्चे बात-बात पर करता है तो वह गलत है । आगे चलकर बच्चे कि भविश्य पर इसका बुरा असर पद सकता है और ये आपके बच्चो कि आदत बन सकते है । इससे बचने के लिए पैरेंट्स को समय रहते हि अपने बच्चोकि इस आदत को सुधारने कि कोशिस करनी चाहिए ताकि देर ना हो ।
अपने बिगडते बच्चो को कैसे सुधारे ?
यदि आपके बच्चे आपको किसी चिज के लिए पुच्छे, और आप उल्झन मे है कि यह बात बच्चो से कहू कि ना कहु, तो बच्चो से उसकि सवालो के बारे मे पुच्छे । मसलन, यदि आपके बच्चे मोबाइल या टि.भि. देखना चाहते है तो बच्चो से वजह पुछे । उसकि हर क्रियाकलाप मे नजर रखे, ताकि आपके बच्चे गलत रास्ते ना चले। अपने बच्चो को सहि और गलत कि परख दे ।
बच्चो के अनुशासन हिनता के कारण क्या है ?
कभि-कभि परिवार के छोटे होने के कारण भि बच्चो कि सहि देखभाल नहि हो पाती है । पैरेंट्स अपने बच्चो के हर माग को बिना पुछे हि पुरा कर देते है । इससे बच्चो मे स्वच्छंदता का विकास होने लगता है और बच्चे अनुशासन से दुर होने लगता है इसके चलते बच्चे सहि क्या गलत क्या समझ नहि पाते है और अपराधिक और असभ्य घटनाओ मे शामिल होने लगते है ।
विधार्थियो मे बढति अनुशासनहीनता का मुख्य कारण क्या है ?
यह एक बहुत हि गंभिर सवाल है । यदि हम अपनि समाज मे नजर डाले तो चारो तरफ अनुशासनहीनता दिखाइदेति है । यहि मुख्य वजह है कि देश तथा समाज कि प्रगति और विकास सहि प्रकार से नहि हो पा रहि है । यदि छत्रो मे अनुशासन नहि होगा तो हमारा समाज बिगडेगी और समाज बिगडेगी तो देश का भला होना तो नामुमकिन हि है ।
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